Thursday, 24 April 2014

II सोचते सोचते यु ही II



II सोचते सोचते यु ही II

यह सच है जोड़िया आसमान में बनती है..
जरया मगर यहाँ धरती पर होता है..
किसकी किस्मत में क्या है वोह रब जानता है..
इसमें फर्क करने वाले कौन हम और कौन आप होते है..??

हाथो की उंगलिया पाच होती है..
हर एक का अपना अलग वजूद होता है..
मगर एक हो तो बेमिसाल ताकद बनती है..
फिर क्यों हर इंसान एक सा हो, ये जिद हम करते है..??

ऐसे काही सवाल है जो हमे परेशान करते है..
उसका जवाब धुंडने की हम कोशिश करते है..
सारे जवाब सामने होते है और हम देख नहीं पाते..
क्यों के अक्सर हम सिर्फ अपने बारे में सोचते है..!!
और दुसरो की बस खामिया धुंडते है..!!

*चकोर*

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