II कवी की कल्पना II
कविता को कभी जिंदगी ना समझना..
यह गुनाह यारो कभी ना करना..
कविता होती है मात्र जिंदगी का आईना..
इसका काम है बस तस्वीर (छबी) दिखाना..!!
कविता होती कभी कल्पनाओं की उड़ान..
इसको ना किसा डर,
इन्द्रधनु से होते इसके सतरंगी पर..
ये कभी हवा से बाते करती..
तो कभी बादल से..
होती यह चंचल चितवन..
कभी आसमां तो कभी धरती पर..!!
कवितावों का तुम बस लुफ्त उठाओ..
आओ इसकी आगोश में खो जाओ..
उच्च नीच तो होती रहेगी जिंदगी..
मगर, भूलना नहीं..
के अच्छी लगे तो,
कवी की कल्पना को तुम जरुर सराहो..!!
*चकोर*
कविता को कभी जिंदगी ना समझना..
यह गुनाह यारो कभी ना करना..
कविता होती है मात्र जिंदगी का आईना..
इसका काम है बस तस्वीर (छबी) दिखाना..!!
कविता होती कभी कल्पनाओं की उड़ान..
इसको ना किसा डर,
इन्द्रधनु से होते इसके सतरंगी पर..
ये कभी हवा से बाते करती..
तो कभी बादल से..
होती यह चंचल चितवन..
कभी आसमां तो कभी धरती पर..!!
कवितावों का तुम बस लुफ्त उठाओ..
आओ इसकी आगोश में खो जाओ..
उच्च नीच तो होती रहेगी जिंदगी..
मगर, भूलना नहीं..
के अच्छी लगे तो,
कवी की कल्पना को तुम जरुर सराहो..!!
*चकोर*
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