Tuesday, 27 May 2014

II मन II



// मन//

मन सागर सागर..
कसा लागावा ग थांग..
अंतरी उठती तरंग..
कसे थोपवू मी सांग..!!

मन पाखरू पाखरू..
झेप घेई गगनात..
नाही पंखात बळ..
कसे उतरू ग मनात..!!

मन आकाश आकाश..
लाख चंद्र तारे त्यात..
नाही लागे काही ठाव...
कसे भेटावे ग क्षितिजात..

चकोर

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