Saturday, 18 May 2019

वक्त के साथ...

वक्त के साथ...
जिंदगी का हर लम्हा
वक्त के साथ गुजरता है..
यादो के घरोंदों में अक्सर
हर इंसान तनहा होता है..!!
हरे पत्ते भी सुख जाते है
हवा के साथ बिखरते है..
मगर बिखरे मन के पत्ते
क्यों बेवक्त हरे होते है..!!
हरयाली को रौंद कर
पगडंडी मैली हो जाती है..
और मिट्टी की भरी कोख
फिर सुनी रह जाती है..!!
ढलते सूरज की तरह
उम्र भी ढल जाती है..
झुर्रियों की लिखावट से
जैसे कब्र भारी होती है..!!
***सुनिल पवार...✍️

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