Thursday, 25 June 2015

II तुम हो II

तुम हो..

तुम हो घटा घनेरी..
जो आंखोसे बरसती..
कहते हो हमें बैरी..
इल्जाम क्यों लगाती..!! 


तुम तो वो हवा हो..
जो सासों को मेहकाती..
कहते हो हमें बैरी..
इल्जाम क्यों लगाती..!!

तुम हो मेरी ज्योती..
जो आँखों में चमकती..
कहते हो हमें बैरी..
इल्जाम क्यों लगाती..!!

तुम तो मेरी जान हो..
जो दिल में मेरे बसती..
कहते हो हमें बैरी..
इल्जाम क्यों लगाती..!!

कैसी है ये उलझन..
वो जानती ना मानती..
कहती है हमें बैरी..
इल्जाम क्यों लगाती..!!
--सुनिल पवार..

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