हम भी परिंदों की तरह..
हम भी परिंदों की तरह
उड़ान भरनें की चाह रखते है।
पर लोग न जानें क्यों?
बढ़ते कदमों की राह रोकते है।
गम इस बात का नहीं के
वो आये दिन रुकावट बनते है।
दुःख तो इस बात का है की
वो दूसरों को कम आँकते है।
खैर दुनियां का दस्तूर यहीं है
ये सोचकर हम चलते रहते है।
हमारी दिल की चाह हम
अपने ही दिल में रखते है।
--सुनील पावर..

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