Thursday, 20 November 2014

मन

मन..

मन सागर सागर..
कसा लागावा तो थांग।
मनी उठती तरंग
कसे थोपवावे सांग।

मन पाखरू पाखरू
झेप घेई गगनात।
बळ नुरले पंखात
कसे उतरू मनात।

मन आकाश आकाश
लाख चंद्र तारे त्यात।
नाही लागत गं ठाव
कसे भेटू क्षितिजात।

मन मंदिर मंदिर
वसे देव म्हणे त्यात।
फुटे पाझर ना त्यास
किती जोडावे मी हात।
--सुनील पवार..

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