Tuesday, 4 June 2019

मगर कब तक...

मगर कब तक...
अक्सर लोग
अपनों से खिलवाड़
और बेगानों से प्यार करते है।
बहरे के पास
गूंगे की तक़रार करते है।
अचरज की बात यह है की
अंधे भी आँखमिचौली खेलते है।
पीछा छुड़ाने वालों के पीछे
लोग भागते हुए नजर आते है।
मन्नते भी उससे माँगते है
जिसका वजूद खुद उनसे है।
ताज़्जुब की बात यह है के
लोग सीरत को छोड़ सूरत को पूजते है।
मगर कबतक चलता रहेगा सब
कभी ना कभी तो ऊब जाएंगे लोग।
और खुद सजाई हुई उस मूरत को
विसर्जित कर घर आएंगे लोग।
--सुनिल पवार...✍️

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