shabda Tarang
Monday, 30 November 2015
|| कभी कभी ||
|| कभी कभी ||
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कभी कभी हसीं गुन्हा
करने को जी चाहता है--
रूबरू हो जावु उनसे
के मरने को जी चाहता है-!!
सिले सिले होट मगर
कुछ कहने को जी चाहता है--
आँखों आंको में बतलादु
के बहने को जी चाहता है--!!
राह अंजानी सही
पहचानने को जी चाहता है;-
हमसफ़र बन जाओ अगर
साथ चलने को जी चाहता है--!!
हर घडी हर लमहा
इंतज़ार करने को जी चाहता है--
वोह बेखबर ही सही
के प्यार करने को जी चाहता है--!!
******सुनिल पवार-----
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